Friday, July 23, 2010

नेहरु से बेहतर कोई नहीं जानता


किसी को यह बताने की जरूरत नहीं कि स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु जितने बड़े राजनेता थे, उतने ही बड़े रचनाकार भी। एक ओर उन्होंने जहां अपने राजनीतिक चिंतन से समाज को सुंदर बनाने का प्रयास किया, वहीं दूसरी ओर मेरी कहानी, हिन्दुस्तान की कहानी तथा विश्व इतिहास की झलक जैसी महत्त्वपूर्ण कृतियों से अपनी रचनात्मक प्रतिभा की भी धाक जमायी।
हिन्दुस्तान की कहानी विश्व साहित्य की अत्यंत ही प्रसिद्ध और लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है। यह किताब नेहरु जी ने अहमदनगर किले के जेलखानों में अप्रैल से सितंबर 1944 के पांच महीनों में लिखी थी। जेल की तंग दीवारों के बीच कैद होने पर भी पंडित जी इस पुस्तक में ‘भारत की खोज’ की अनंत और दुर्धर्ष यात्रा पर निकल पड़ते हैं। इतिहास के विविध दौरों से परिचय कराते हुए वह इसे आधुनिक काल और उसकी बहुमुखी समस्याओं तक ले जाते हैं और फिर भविष्य की झांकी दिखाकर हमें खुद सोचने-समझने को प्रेरित करते हैं। नेहरु जी की दूसरी महत्त्वपूर्ण पुस्तक मेरी कहानी (सस्ता साहित्य मंडल ने हिंदी में आत्मकथा इसी नाम से प्रकाशित की है।) भी जून 1934 से फरवरी 1934 के बीच जेल ही में लिखी गई और विश्व इतिहास की झलक जेल से लिखे पत्रों का एक शानदार संकलन है। जेल ही से लिखे पत्रों का एक छोटा किंतु अतुलनीय महत्त्व का संकलन पिता के पत्र पुत्री के नाम भी है। इस संकलन के पत्र नेहरु, इंदिरा को तब लिखे थे जब वह मात्र नौ-दस वर्ष की बालिका थी। तब वह इंदिरा नहीं इंदु थी। इन पत्रों के माध्यम से नेहरु जो विषय/प्रश्न उठाते हैं वे बड़े ही गंभीर हैं। अपनी इतिहास-दृष्टि विकसित करने व नेहरु की इतिहास-दृष्टि को समझने के लिए यह पुस्तक अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। इस किताब को मैंने कई दफा पढ़ा बल्कि कहिए कि बार-बार पढ़ा। मेरी कोशिश होती है कि चार-छह माह के भीतर एक बार अवश्य ही पढ़ लूं। मेरा मानना है कि इस छोटी काया वाली पुस्तक को बी.ए. स्तर तक के विद्यार्थियों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया जाये, अगर कुछ भी हम अनिवार्यतया पढ़ाते हों। यूरोपीय इतिहास-दर्शन के क्षेत्र में जिस तरह एच. जी. वेल्स, कालिंगवुड और क्रोसे हैं, भारत में नेहरु का भी वही स्थान रहेगा।

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